स्वास्थ्य रक्षा पर निबंध

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स्वास्थ्य पर निबंध

Essay On Health In Hindi - Swasthya Par Nibandh

रूपरेखा : स्वास्थ्य रक्षा का अर्थ - स्वास्थ्य रक्षा का आधार - व्यायाम स्वास्थ्य का मूल मंत्र - पौष्टिक और स्वास्थ्यकर भोजन - शांत निद्रा।

स्वास्थ्य रक्षा का अर्थ

स्वास्थ्य रक्षा का अर्थ है शरीर की रोग, विकार, आलस्य आदि से रक्षा करना। मन के उद्घेग, कप्ट या चिन्ता से रक्षा, स्वास्थ्य रक्षा है। शास्त्रों के अनुसार आध्यात्मिक (मन से उत्पन्न दु:ख), आधिभौतिक (शारीरिक दु:ख) तथा आधिदैविक (प्रकृत दु:ख) रूपों से भावना की रक्षा, स्वास्थ्य रक्षा है। वेदव्यास जी के अनुसार प्रकृति से उत्पन्न गुण जीवात्मा को शरोर में बाँधते हैं । इनमें सत्त्व गुण (निर्मल होने से प्रकाशवान्‌) को छोड़कर शेष दो रजो गुण (कामना और आसक्ति) तथा तमो गुण ( प्रमाद, आलस्य और निद्रा) से जीवात्मा की रक्षा स्वास्थ्य रक्षा है। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार दैहिक (शारीरिक), दैविक (प्राकृतिक) तथा भौतिक (सांसारिक) तापों से शरीर की रक्षा स्वास्थ्य रक्षा है।

स्वास्थ्य रक्षा का आधार

स्वास्थ्य को स्थिर रखने के लिए उसके तीन उपाय है आहार, स्वप्न (निद्रा) तथा ब्रह्मचर्य। यह तीन स्वास्थ्य रक्षा का आधार है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं हो, तो मन स्वस्थ नहीं रह सकता । मन स्वस्थ नहीं, तो विचार स्वस्थ नहीं रह सकते। कई महापुरषों ने कहा है 'स्वास्थ्य ही धन है'। स्वास्थ्यहीन व्यक्ति अविवेकी, विचारशून्य, आलसी, अकर्मण्य, क्रोधी, झगड़ालू अर्थात्‌ दुर्गुणों का भंडार होता है ।इसके विपरीत शरीर की स्वस्थता से मुख- मंडल दमकता है, शरीर का गठन और अंगों की चारुता चमकती है, चाल में चुस्ती और चंचलता प्रकट होती है ।शरीर में आत्मा निवास करती है। आत्मा परमात्मा का स्वरूप है । एक प्रकार से शरीर परमात्मा का पुण्य मंदिर है, जिसे स्वच्छ और शुद्ध रखना मनुष्य का धर्म है। इसलिए मनुष्य को व्यायाम, संतुलित एवं नियमित भोजन, शुद्ध जलवायु का सेवन, संयम-नियमपूर्ण जीवन तथा ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए जिससे उनके स्वास्थ्य हमेशा निरोग रहे।

व्यायाम स्वास्थ्य का मूल मंत्र

व्यायाम स्वास्थ्य का मूल मंत्र है । व्यायाम से शरीर को बल मिलता है, पाचन शक्ति ठीक रहती है, शरीर में ठीक से रक्त-संचार होता है, हड्डियाँ मजबूत होते हैं, सीना चौड़ा होता है, भुजाओं में बल आता हैं। इससे मन में साहस, उत्साह, आत्मविश्वास, निर्भीकता के भाव जाग्रत होते हैं । चेहरे की झुर्रियाँ, शरीर की शिथिलता, मन की उदासी तथा मस्तिष्क की आलस्य दूर होती है। इस प्रकार व्यायाम से शरीर सूंदर बनता है, बुद्धि विकसित होती है और मन पर संयम रहता है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम नित्य और नियमित रूप से करना चाहिए, पर उतना ही करना चाहिए, जितना आपसे हो पाए | भोजन के बाद‌ व्यायाम नहीं करना चाहिए और न व्यायाम के तुरंत बाद भोजन करना चाहिए। सुबह या शाम के समय शुद्ध और खुली हवा में व्यायाम करना शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक है।

पौष्टिक और स्वास्थ्यकर भोजन

स्वास्थ्य रक्षा का अनेक मूलमंत्र है जैसे पौष्टिक और स्वास्थ्यकर भोजन खाना। भोजन नियत समय पर और भूख लगने पर करना चाहिए। सादा, सुपाच्य, सन्तुलित और पौष्टिक भोजन अधिक लाभदायक है । घी, तेल, फल, सब्जी के प्रयोग से भोजन में पौष्टिकता आती है। सड़े-गले बासी, अपाच्य भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। खटाई-मिर्च का भी सेवन कम से कम करना चाहिए। अपनी शारीरिक प्रकृति के विरुद्ध भोजन नहीं करना चाहिए जैसे गर्म भोजन के मध्य ठंडा जल, ताजे फल खाकर जल पीना, दही के साथ मूली और दूध के साथ मछली असंगत हैं। नशीले पदार्थ से परहेज करना चाहिए ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। पानी स्वच्छ पीना चाहिए। कई बार नलों में गन्दा पानी आ जाता है। उसे उबालकर या फिलटर कर स्वच्छ कर लेना चाहिए।

शांत निद्रा

स्वास्थ्य रक्षा का महत्वपूर्ण मूलतंत्र है निद्रा। गहरी और शांत निद्रा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। नींद से शरीर की धकावट दूर होती है, मस्तिक स्वस्थ होता है। समय पर निंद्रा से मनुष्य का शरीर निरोग रहती है। निंद्रा पूरी न होने पर मनुष्य का मन चिड़चिड़ा रहता है तथा सुबह सुबह उनका सर दर्द करने लगता है। दैनिक जीवन में स्वास्थ्य- रक्षा के मुल मंत्रों को अपना कर हम इस संसार का उपभोग कर सकते हैं। अपने जीवन को जीवन काल निरोग रख सकते है तथा शरीर के हर रोग से रक्षा कर सकते है।

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